महाशय धरमपाल हट्टी : तांगे वाले से अरबपति तक | Biography of Mahashay Dharampal Hatti in Hindi


हम छोटी सी से ही विफलताओ अपना सहस खो देते है  और सफलता की मंजिल को पहुँचने से पहले कुछ कदम पहले ही रुक जाते हैं | हमें और आपको ये सुनकर आश्चर्य हो रहा है कि एक तांगे वाला अरबपति आखिर कैसे बन सकता है | धरमपाल जी नवजवानों के जिए मिसाल हैं |चलिए पढ़ते हैं इनकी जीवनी और इनका सफ़र – मसालों से मिसाल तक



धरमपाल हट्टी क्यों है प्रसिद्ध :-  
                          
                                   धरमपाल हट्टी जिन्हें हम मसाला किंग नाम से जानते हैं , महाशय धरमपाल हट्टी जी के मसाले आज दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| ‘’महाशियाँ दी हट्टी (MDH)’’ के दुनिया भर में 1000 से ज्यादा थोक और 4 लाख से ज्यादा रिटेल डीलर्स हैं | आज MDH के 52 प्रोडक्ट हैं जो कि 140 से ज्यादा पैकटो में उपलब्ध है|

                     धरमपाल हट्टी ने इस दुनिया में तब आंखे खोली जब हम अंग्रेजो के गुलाम थे और तब भारत और पकिस्तान इक ही मुल्क थे | 27 मार्च 1927 सियालकोट (अब जो पकिस्तान में है | ) के एक छोटे से मोहल्ले में पैदा हुए थे | महाशय धरमपाल जी के पिता चुन्नीलाल गुलाटी के 3 बेटे और 5 बेटियाँ थी और महाशय धरमपाल हट्टी के पिता चुन्नीलाल सियालकोट के बाजार पंसायारिया  में मिर्च मसले की दुकान चलते थे | जिसका नाम था – ‘’महाशियाँ दी हट्टी ‘’ जो आज MDH के नाम से दुनिया भर में मशहूर है और मसालों की दुनिया में सबसे बड़ा ब्रांड है |
                     जब महाशय जी जब धीरे धीरे बड़े हुए तो इनका मन पढाई से दूर भागता और शायद किताबो से नाराजगी की वजह से महाशय जी 5 वीं फेल हो गये और यही से स्कूल जाना छोड़ दिया | धरमपाल जी के 5वीं में फेल हो जाने से उनके पिता ने सोचा की अब इन्हें किसी व्यवसाय में लगाया जाये | सर्वप्रथम धर्मपाल जी ने 8 महीने बधाई का काम किया लेकिन ये इन्हें रास नही आया सो बढईगिरी छोड़ दी | जिसके बाद साबुन फैक्ट्री ,चावल फैक्ट्री,कपड़े की  फैक्ट्री में  as a worker ऐसे पता नही कितने काम उन्होंने 15 वर्ष की उम्र तक किये |जब धरमपाल जी का मन कहीं नही लगा तो उनके पिता ने इन्हें पुश्तैनी कारोबार में लगा दिया | ये तब का दौर था जब आज़ादी पाने की लालसा में क्रन्तिकारी आन्दोलन कर रहे थे | 18 वर्ष की उम्र में इनका विवाह लीलावती से हुआ | शादी के बाद उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास आया और उन्होंने अपनी मौजमस्ती छोड़ने का मन ही मन में संकल्प लिया और पुश्तैनी काम धंधे को गंभीरता से लिया | धरमपाल जी पेशावर से मिर्च, हल्दी और किराने का सामान अमृतसर से लाते | उसे घर पर ही कूटते, और दुकान के नीचे लगी चक्की से मिर्च और हल्दी पीसते | और 2 रूपये की ,दो आने की ,एक आने की पुड़िया बनाकर बेचते | चूँकि सामन में quality थी तो लोग मसाले  खरीदने के लिए सीधे धरमपाल की दुकान पर आते थे |यानी की सियालकोट के पंसारिया  बाजार में धर्मपाल जी के पिता चुन्नीलाल की दुकान जम चुकी थी |

चौपट हुआ बना बनाया व्यापर :-
                              
                       जब देश का बटवारा हुआ तो सियालकोट में चुन्नीलाल के घर के एक तरफ हिन्दुओ का मोहल्ला था |तो दूसरी तरफ मुस्लिमो का मोहल्ला था | और जब यह तय हो गया की पकिस्तान के हिस्से में जायेगा तो हिन्दू - मुस्लिमो के बीच तनाव बढ़ गया | धर्मपाल जी के परिवार वालों ने सियालकोट छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी और जब परिवार मध्यम वर्ग से सम्पन्न वर्ग की ओर बढ़ रहा था तो इसे भारत पकिस्तान विभाजन के कोप का भाजन बनाना पड़ा और ये संपन्न परिवार 20  अगस्त 1947 को शरणार्थी बन चुका था  |   
धरमपाल और उनके परिवार को विभाजन के कुछ दिनों तक सड़क पर ही सोना पड़ा |एक दिनजब धर्मपाल के चाचा जी सड़क पर लेटे हुए थे तब एक ट्रक उनके चाचा की तंग को कुचलता हुआ गुजर गया |सुबह उन्हें लेकर सेवा अस्पताल गये फिर वही से लुधियाना चले गये और फिर ट्रक के माध्यम से दिल्ली पहुच गये |

चलाया तांगा :- 

                             धरमपाल जब दिल्ली पहुचे तो करोलबाग में अपनी बहन के घर पर ठहरे | और करोलबाग़ के एक खाली प्लाट पर कब्जा कर के धर्मपाल ने अपना आशियाना बनाया | क्योकि दिल्ली में नए थे तो कोई रोजगार नही था जैसे तैसे कुछ रूपये जुटाकर तांगा और घोड़ा ख़रीदा और बन गये तांगेवाले | धर्मपाल जी का तांगा क़ुतुब रोड पर दौड़ता | दो महीने बाद उन्हें सूझा  तांगा चलाना उनके बस की बात की बात नही लेकिन उन्हें मिर्च मसालों के अलावा और कोई भी काम नही आता था | और बढ़ा दिया पुराने धंधे की ओर कदम|

फिर से शुरू किया व्यापार :-
                     
                       करोलबाग़ की अजमल खां रोड पर 14 फिट का लकड़ी का खोखा बनाया और मसाले तैयार करने लगे |एक सम्पन्न परिवार के ये दिन आ गये थे की उन्हें एक खोखे में रहना पड़ रहा था | धीरे धीरे पुनः उन्होंने मिर्च मसालों का साम्राज्य स्थापित किया अखबारों में विज्ञापन के जरिये से लोगो ने सियालकोट के देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में है और यह जानते ही दिल्ली के लोगों साथ उन्हें मिला | और 1960 आते आते ‘’महाशियाँ दी हट्टी’’ (MDH) करोल बाग़ में मसालों की मशहूर दुकान बन चुकी थी | और इसके बाद में पंजाबबाग़ में दुकान ली और फिर खाड़ीपड़ी और इस तरह से एक खोके की दुकान से महाशय जी ने दिल्ली के अलग अलग इलाको में अपनी दुकान खोली | और जब मिर्च मसालों की बिक्री ज्यादा होने लगी तो उन्होंने घर के बजाय पहाड़गंज की मसाला चक्की में पिसाई का काम शुरू किया | जब वे एक दिन मसालों की जाँच करने के लिए गये तो वे मसालों में मिलावट देखकर सन्न रह गये | उन्होंने कहा quality ही MDH की पहचान है और हम इसके साथ कोई समझौता नही करेंगे और उन्होनें खुद अपनी देख-रेख में मसाले पीसने का प्रण लिया | और यही प्रण उनकी कामयाबी का कारण बना |
1959 में कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने के अपनी फैक्ट्री लगायी |और धीरे धीरे इनकी संख्या 4 हो गयी | 60 सालो की मेहनत का नतीजा है की MDH मसाला आज सौ से ज्यादा देशों में इस्तेमाल किया जा रहा है | पुरे देश में एक हज़ार destributer हैं,इनती बड़ी उपलब्धि के बाद भी धर्मपाल जी 12 से 14 घंटे आज भी काम करते है | धरमपाल जी प्रतिदिन अपने घर हवन करते हैं और वे बताते है की ये उन्होंने अपने पिता जी से सीखा है | महाशय जी भले ही 5 की क्लास में फेल हो लेकिन उनके द्वारा कई स्कूल चलाये जा रहे हैं जिसमें हज़ारो बच्चे पढ़कर अपने भविष्य के सपने बुन रहे हैं |उनके अस्पताल गौशाला आश्रम आदि सामाजिक कार्य कर रहे हैं |
Previous
Next Post »